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गीता प्रेस, गोरखपुर >> हृदय की आदर्श विशालता

हृदय की आदर्श विशालता

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1056
आईएसबीएन :81-293-0510-0

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प्रस्तुत पुस्तक में चरित्र सुधार तथा चरित्र के उच्चस्तर पर आरूढ़ होने में सहायता मिली है।

Hridaya Ki Adarsh Vishalta -A Hindi Book by Geetapres Gorakhpur - हृदय की आदर्श विशालता - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दास प्रथा को लेकर अमेरिका में गृहयु्द्ध छिड़ा (1861-1865)। दासप्रथा समर्थक सेना के प्रधान सेनाध्यक्ष तम्बाकूवाले बर्जीनिया राज्य के जनरल ली थे। जनरल ली इस युद्ध में परास्त हुए उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। सन्धि की शर्तें तय करने और उन पर हस्ताक्षर कराने के लिये दासप्रथा-विरोधी दल की ओर से जनरल ग्राण्ट ली के पास गये। ग्राण्ट की दशा उस समय वैसी ही थी, जैसे भीष्म और द्रोण के सामने अर्जुन की हुआ करती थी। गृहयुद्ध से पूर्व ग्राण्ट ली की मातहती में काम कर चुके थे और ली ने उन्हें सैन्य संचालन में बहुत कुछ शिक्षा-दीक्षा भी दी थी। गुरुतुल्य ली को पराजित और मानभंग की अवस्था में देखकर ग्राण्ट विह्वल हो गये। उन्होंने लिखा, ‘I Felt like anything rather than rejoicing at the downfall of foe who had fought so long and valiantiy’ ऐसे शत्रु के गिर जाने पर जो इतने दीर्घकाल तक इतनी वीरतापूर्वक लड़ा हो, मुझे चाहे कुछ भी हुआ हो,  परन्तु प्रसन्नता नहीं हुई।’

युद्ध का नियम है कि पराजित शत्रु के अस्त्र-शस्त्र और वाहन छीन लिये जाते हैं; परन्तु ली के केवल एक बार कहने पर ही ग्रान्ट ने अफसरों के व्यक्तिगत हथियार एवं घोड़े उन्हीं के पास रहने दिये। ली के यह बतलाने पर कि ‘खाद्य-सामग्री समाप्त हो जाने से उसके 25, 000 सैनिक भूखे हैं,’ ग्राण्टने तुरन्त उसकी समुचित व्यवस्था करा दी। इसी समय युद्ध-मन्त्री का सन्देश आया कि ‘जनरल ली के आत्मसमर्पण की खुशी में तुरन्त 1,000 तोपों की सलामी छोड़ी जाय।’ ग्रान्टने लिखा कि ‘ली-जैसे वीर को बार-बार यह स्मरण दिलाना कि तुम पराजित हो गये हो, शोभनीय नहीं है। विजयोत्सव के उपलक्ष में तोपें न छोड़ी जायँ, नहीं तो, ली से अधिक मेरी आत्मा को कष्ट पहुँचेगा।’
ग्राण्टकी प्रार्थना स्वीकृति हो गयी और तोपें नहीं छोड़ी गयीं।

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